Tuesday, November 21, 2017

तरक्की

                                 


लगता था रफ़्तार है तो तरक्की है | लेकिन सड़कों के गड्ढ़े लगातार बढ़ रहे थे | नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत याद करते  हम इंतज़ार कर रहे  थे , कि कब आयेंगे अच्छे रफ़्तार भरे दिन | 
अचानक कुछ हलचल दिखाई दी कोलतार, रोड़रोलर और मजदूर .... लगा कि दिन पलटने को हैं लेकिन जैसे-जैसे सड़क उभरने लगी वैसे-वैसे ही उभरने लगे कुछ स्पीड ब्रेकर ...... लोगों ने खुद बनवाये थे .....ज्यादा नहीं हर दूसरे –तीसरे घर के बाद एक ...... 

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इस ब्लॉग पर प्रकाशित सभी रचनाएं स्वरचित हैं तथा प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं यथा राजस्थान पत्रिका ,मधुमती , दैनिक जागरण आदि व इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं . सर्वाधिकार लेखिकाधीन सुरक्षित हैं