Saturday, August 20, 2016

ले चुग्गा विश्वास से

दोहागीत
दाना देते चोंच में पिता प्रेम अनमोल
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल

छंद रचे या श्लोक तू नित्य नए हर बार
तुतली वाणी में बहे कविता की रस धार
चूँचूँ चींचीं रूप में मीठी मीठी बोल
ले चुग्गा ......

ठहर जरा भरपूर ले अपना यह आहार
फिर उड़ना आकाश में अपने पंख पसार
स्वप्निल एक वितान तू अरमानों से तोल
ले चुग्गा ......

मर्यादित रहना सदा हो सीमा का भान
बाधाएँ आती डरे रक्षित निज सम्मान
ओलम्पिक की रेस हो या जीवन का झोल
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल



चित्र गूगल से साभार 



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आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ कि अपना बहुमूल्य समय देकर आपने मेरा मान बढाया ...सादर

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